सोयाबीन का भाव ₹6000 तक कब पहुँचेगा?

सोयाबीन का भाव: ₹6000 की मंजिल कब तक? एक किसान की नजर से


नमस्कार, मैं हूँ राजेश पटेल, मध्य प्रदेश के इंदौर जिले के एक छोटे से गाँव का किसान। पिछले 20 सालों से सोयाबीन की खेती कर रहा हूँ। सुबह-सुबह खेतों में घूमते हुए, जब हरी-भरी फसलें लहराती हैं, तो लगता है कि जीवन की सारी मेहनत रंग लाएगी। लेकिन जब मंडी पहुँचते हैं और भाव सुनते हैं, तो दिल बैठ जाता है। आजकल हर किसान का यही सवाल है – आखिर कब तक सोयाबीन का भाव ₹6000 प्रति क्विंटल तक पहुँचेगा? यह सवाल सिर्फ आर्थिक नहीं, बल्कि हमारी जिंदगी का सवाल है। आज मैं अपनी नजर से इसकी कहानी बयान करूँगा, कुछ आंकड़ों और अनुभवों के साथ, ताकि हम सब मिलकर सोच सकें कि भविष्य क्या लाएगा।


सबसे पहले, आज की हकीकत को समझें। नवंबर 2025 में, जब हमारी फसल कटाई के बाद मंडियों में पहुँच रही है, तो भाव औसतन ₹4100 से ₹4200 प्रति क्विंटल के आसपास घूम रहा है। यह न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से भी नीचे है, जो सरकार ने 2025-26 के लिए ₹5328 प्रति क्विंटल तय किया है। याद कीजिए, पिछले साल जुलाई 2024 में तो भाव ₹4305 तक गिर गया था, जो एमएसपी से 20% कम था। मेरे जैसे लाखों किसानों के लिए यह सिर्फ नंबर नहीं, बल्कि कर्ज चुकाने का बोझ है। खाद, बीज, मजदूरी – सब कुछ महँगा हो गया है, लेकिन फसल का दाम ठहरा हुआ सा लगता है। क्यों ऐसा हो रहा है? आइए, थोड़ा पीछे चलें।


सोयाबीन भारत का एक प्रमुख तिलहन है, जो मुख्य रूप से मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान और गुजरात में उगाया जाता है। हमारा देश दुनिया का पाँचवाँ सबसे बड़ा उत्पादक है, लेकिन आयात पर भी निर्भर। 2025-26 के खरीफ सीजन में उत्पादन में 12% की गिरावट का अनुमान है – करीब 10.7 मिलियन टन तक। कारण? कम बुआई क्षेत्र, अनियमित मानसून और कीटों का प्रकोप। मेरे खेत में इस साल जुलाई में बारिश देर से आई, जिससे फसल की पैदावार 15-20% कम हो गई। वैश्विक स्तर पर भी चुनौतियाँ हैं। अमेरिका और ब्राजील जैसे बड़े उत्पादक देशों में उत्पादन बढ़ रहा है – 2025/26 में वैश्विक उत्पादन 300 मिलियन टन का अनुमान है। इससे अंतरराष्ट्रीय कीमतें दबाव में हैं, और हमारी मंडियाँ प्रभावित हो रही हैं।


अब सवाल वही – ₹6000 कब? कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि यह मंजिल 2026 तक संभव है, अगर सही नीतियाँ बनीं। एक रिपोर्ट के मुताबिक, ट्रेडर्स का अनुमान है कि 2025 में भाव ₹5300 से ऊपर नहीं जाएगा, लेकिन अगर निर्यात बढ़ा और घरेलू माँग मजबूत हुई, तो आसमान छू सकता है। फरवरी 2025 के पूर्वानुमान में लातूर मंडी के लिए ₹4000-4400 का अनुमान था, लेकिन कटाई के समय यह और गिर गया। मेरे हिसाब से, तीन मुख्य कारक तय करेंगे। पहला, मौसम। अगर 2026 का मानसून सामान्य रहा, तो पैदावार बढ़ेगी, लेकिन अगर सूखा पड़ा, तो भाव चढ़ सकते हैं।

दूसरा, सरकारी हस्तक्षेप। एमएसपी को लागू करने के लिए नाफेड जैसी एजेंसियों को मजबूत करना होगा। तीसरा, वैश्विक व्यापार। चीन जैसे देशों की माँग अगर बढ़ी, तो हमारे निर्यात के द्वार खुलेंगे। याद रखिए, 2024 में भाव ₹6000 छूने की चर्चा हुई थी, लेकिन उत्पादन ज्यादा होने से नीचे आ गया।


किसानों की नजर से देखें तो यह इंतजार कष्टदायक है। मेरे गाँव में कई किसान कर्ज के जाल में फँसे हैं। एक दोस्त ने तो अपनी जमीन बेच दी क्योंकि भाव ₹4700 तक ही मिला। हमारी मेहनत रात-दिन की है – बीज बोना, खरपतवार हटाना, फसल की निगरानी। लेकिन मंडी में व्यापारी भाव दबाते हैं। क्या करें? मैंने खुद को बदलने की कोशिश की। अब मैं फार्मोनॉट जैसे ऐप्स का इस्तेमाल करता हूँ, जो सैटेलाइट से फसल की सेहत बताते हैं। इससे पैदावार 10% बढ़ गई। साथ ही, जैविक खेती की ओर रुख किया, ताकि प्रीमियम भाव मिले। लेकिन ये छोटे कदम हैं; बड़े बदलाव नीतियों से आएँगे।


भविष्य की तस्वीर थोड़ी उम्मीद भरी है। 2025 के अंत तक, अगर वैश्विक तनाव बढ़े – जैसे व्यापार युद्ध या जलवायु परिवर्तन – तो कीमतें ऊपर जा सकती हैं। एक पूर्वानुमान के मुताबिक, खरीफ 2025-26 में कटाई के समय ₹4350-4650 रह सकता है, लेकिन अगर आयात घटा, तो ₹5500 पार हो सकता है। मेरा अनुमान? 2026 के मध्य तक, अगर सरकार निर्यात सब्सिडी दे और स्टॉक सीमाएँ हटाए, तो ₹6000 संभव है। लेकिन यह ‘अगर’ पर टिका है। किसानों को संगठित होना होगा – कोऑपरेटिव बनाना, डायरेक्ट मार्केटिंग अपनाना।


अंत में, भाइयों-बहनों, सोयाबीन का भाव सिर्फ नंबर नहीं, हमारी आशाओं का आईना है। मैं राजेश पटेल, अपने खेत से कहता हूँ – धैर्य रखें, लेकिन चुप न रहें। सरकार से माँग करें, तकनीक अपनाएँ, और एक-दूसरे का साथ दें। शायद अगली फसल में वह ₹6000 की मुस्कान मिले। तब तक, खेतों में मेहनत जारी रहेगी। जय जवान, जय किसान!

Leave a Comment