Amezing Farming: अजब गजब की खेती अब हर किसान 1 लाख रुपए लगाकर हर महीने ₹8 लाख रुपए तक कमाई कर सकता है सिर्फ और सिर्फ इस खास फसल की खेती से : नमस्कार किसान भाइयों आज मैं आपको ऐसी फसल की खेती के बारे में बताने वाला हूं जिसमें आप सिर्फ और सिर्फ एक लाख रुपए लगाकर महीने का ₹800000 से भी ज्यादा कमा सकते हो तो चलिए किसान भाइयों आखिर वह फसल कौन सी है आखिर उसे फसल की खेती आप किस तरह से कर सकते हो इसकी सही सही जानकारी में आपको इस पोस्ट में देने वाला हूं इसलिए आप इस पोस्ट को पूरा जरूर पड़े |
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अब चलिए किसान भाइयों अब जानते हैं कि आप कौन सी फसल की खेती करके महीने का 8 लख रुपए कमा सकते हो किसान भाइयों के दिमाग में यह बात जरूर आ रहे होगी कि आखिर वह फसल कौन सी है और उसे फसल की खेती हम कैसे करके इतना ज्यादा मुनाफा कमा सकते हैं तो चलिए किसान भाइयों हम जानते हैं इस फसल की बारे में और कैसे खेती करते हैं
दरअसल किसान भाइयों में बात कर रहा हूं ₹800000 तक की कमाई करने के लिए किसान भाई खरे की खेती को एक अवसर के रूप में देख सकते हैं यह न्यूनतम प्रारंभिक पूंजी के साथ पर्याप्त कमाई का वादा करती है लिए इस खेती पर गौर करें और पता लगाएं कि कैसे हम कम समय में लाखों रुपए महीने के कमा सकते हैं
खेतों में ककड़ी की खेती कैसे करें ?
ककड़ी वैज्ञानिक नाम कुकुमिस मेलो वैराइटी यूटिलिसिमय हैं। यह मूल रूप से भारत की कद्दू वर्गीय जायद की एक प्रमुख फसल हैं। इसको संस्कृत में कर्कटी तथा मारवाडी भाषा में वालम काकरी कहा जाता है। यह कुकुरबिटेसी वंश के अंतर्गत आती है। इसकी खेती का तरीका बिलकुल तोरई के समान हैं, केवल उसके बोने के समय में अंतर हैं।
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जहाँ शीत ऋतु अधिक कड़ी नहीं होती, वहां अक्टूबर के मध्य में इसके बीज बोए जा सकते हैं, नहीं तो इसे जनवरी में बोना चाहिए। ऐसे स्थानों जहां सर्दी अधिक पड़ती हैं, वहां इसे फरवरी और मार्च के महीनों में लगाना चाहिए। इसकी फसल बलुई दुमट भूमियों से अच्छी होती है। इस फसल की सिंचाई सप्ताह में दो बार करनी चाहिए। ककड़ी में सबसे अच्छी सुगंध गरम शुष्क जलवायु में आती है। इसमें दो मुख्य जातियाँ होती हैं- एक में हलके हरे रंग के फल होते हैं तथा दूसरी में गहरे हरे रंग के। इनमें पहली को ही लोग पसंद करते हैं। ग्राहकों की पसंद के अनुसार फलों की तुड़ाई कच्ची अवस्था में करनी चाहिए। इसकी माध्य उपज लगभग 200 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती हैं।
खीरे की खेती में तेजी से खेती का चक्र होता है, जो आमतौर पर 60 से 80 दिनों तक होता है। जबकि खीरे पारंपरिक रूप से गर्मी के मौसम से जुड़े हैं, उनकी पैदावार बरसात के महीनों के दौरान बढ़ती है। विशेष रूप से, खीरे विभिन्न प्रकार की मिट्टी में पनपते हैं, जिनकी पसंदीदा पीएच सीमा 5.5 से 6.8 होती है। इसके अलावा, उनकी अनुकूलनशीलता नदियों और तालाबों जैसे जल निकायों के नजदीक भी खेती की अनुमति देती है।
खाद एवं उर्वरक की मात्रा
ककड़ी के बीज बोने से एक महीने पहले खेत को तैयार करते समय कम्पोस्ट या गोबर की सड़ी खाद 200 से 250 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से ककड़ी की खेती से अच्छी उपज के लिए मिट्टी में अच्छी तरह मिला देते हैं। इसके साथ ही रासायनिक खाद के रूप में 80 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 किलोग्राम फास्फोरस तथा 60 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से उपयोग करें।
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फास्फोरस एवं पोटाश की पूरी मात्रा और एक तिहाई नाइट्रोजन की मात्रा आपस में मिला कर बोने वाली नालियों के स्थान पर डाल कर मिट्टी में मिला दें तथा मेंड़ बनाएं। शेष नाइट्रोजन दो बराबर भागों में बाँटकर बुआई के लगभग 25 से 30 दिन बाद नालियों में ड़ालें और गुड़ाई करके मिट्टी चढ़ायें तथा दूसरी मात्रा पौधों की बढ़वार के समय 35 से 40 दिन बाद लगभग फूल निकलने के पहले छिड़काव के रूप में दें। यूरिया का तरल छिड़काव (5 ग्राम यूरिया प्रति लीटर पानी) करना लाभदायक हैं।
कीट एवं रोकथाम
फल मक्खी : फल मक्खी का प्रकोप ककड़ी की फसल में मुख्य रूप से देखने को मिलता है। यह ककड़ी को अधिक नुकसान पहुंचाती हैं। ककड़ी की फसल में इस मक्खी की रोकथाम हेतु मैलाथियान 50 ई सी या डाईमिथोएट 30 ई सी एक मिलीलीटर प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करें।
बरूथी : ककड़ी की फसल का यह कीट पत्तियों की निचली सतह पर रहकर मुलायम तने तथा पत्तियों का रस चूसते हैं। इस कीट से निजात हेतु इथियॉन 50 ई सी 0.6 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिडकाव करें।
लाल भृंग : ककड़ी की फसल में लगने वाला यह कीट लाल रंग का होता हैं और अंकुरित एवं नई पत्तियों को खाकर छलनी कर देता हैं। इस कीट के नियंत्रण के लिए रोकथाम हेतु कार्बारिल 5 प्रतिशत चूर्ण का 20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से कार्बारिल 50 प्रतिशत घुलनशील चूर्ण का दो किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें। यह छिड़काव 15-15 दिन के अन्तराल पर दो से तीन बार करें।
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ककड़ी की खेती के लिए सरकारी सब्सिडी
उत्तर प्रदेश के दुर्गा प्रसाद की सफलता की कहानी महत्वाकांक्षी ककड़ी किसानों के लिए एक प्रेरणा का काम करती है। सरकारी सब्सिडी का लाभ उठाकर, दुर्गा प्रसाद ने अपने कृषि प्रयासों को एक आकर्षक उद्यम में बदल दिया। उन्होंने बागवानी विभाग से 18 लाख रुपये की पर्याप्त सब्सिडी प्राप्त की, जिससे एक अत्याधुनिक अंकुर घर की स्थापना में मदद मिली। सब्सिडी सहायता के बावजूद, दुर्गा प्रसाद ने अपने स्वयं के फंड से 6 लाख रुपये के साथ निवेश को पूरा किया। इसके अतिरिक्त, उन्होंने नीदरलैंड से 72 हजार रुपये के प्रीमियम खीरे के बीज खरीदे, जिससे असाधारण उपज और गुणवत्ता का मार्ग प्रशस्त हुआ।
बाजारों में ककड़ी की मांग
दुर्गा प्रसाद की खीरे की किस्म की अनूठी बिक्री इसकी बीज रहित प्रकृति में निहित है। पारंपरिक खीरे के विपरीत, यह संस्करण होटल और रेस्तरां जैसे प्रतिष्ठित प्रतिष्ठानों से पर्याप्त मांग प्राप्त करता है। बीज की अनुपस्थिति खीरे के आकर्षण को बढ़ाती है और इसके बाजार मूल्य को बढ़ाती है। नतीजतन, दुर्गा प्रसाद प्रीमियम मूल्य प्राप्त करने में सक्षम थे, उनके खीरे की कीमत 40 से 45 रुपये प्रति किलोग्राम थी, जो पारंपरिक खीरे के औसत बाजार मूल्य 20 रुपये प्रति किलोग्राम से काफी अधिक थी। मांग में यह वृद्धि खीरे की खेती की लाभप्रदता और स्थिरता को रेखांकित करती है, जिससे यह उद्यमियों के लिए एक आकर्षक उद्यम बन गया है।
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कड़ी को बेचने का नया तरीका
डिजिटल कनेक्टिविटी और सोशल मीडिया की शक्ति का उपयोग कृषि उत्पादों को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण साबित होता है। खीरे की खेती करने वाले उद्यमी अपनी प्रीमियम उपज का प्रदर्शन करने और संभावित ग्राहकों के साथ जुड़ने के लिए फेसबुक, इंस्टाग्राम और ट्विटर जैसे प्लेटफार्मों का लाभ उठा सकते हैं।
निष्कर्ष
खीरे की खेती न्यूनतम निवेश के साथ आकर्षक व्यावसायिक अवसरों की तलाश करने वाले व्यक्तियों के लिए एक आशाजनक अवसर के रूप में उभरती है। दुर्गा प्रसाद की अनुकरणीय यात्रा कृषि उद्यमों को सफलता की ओर ले जाने में सरकारी सब्सिडी और रणनीतिक योजना के परिवर्तनकारी प्रभाव का उदाहरण देती है।
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