सोयाबीन और सरसों को बेचने से पहले किसान भाई इस रिपोर्ट को जरूर देखें

Farmer brothers must see this report before selling soybean and mustard.
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किसान साथियो और व्यापारी भाईयो तेल तिलहन के बाजार में मंदी के बादल अभी छंटते नहीं दिख रहे। बाजार में थोड़ी सी तेजी आते ही बाजार फिर से नीचे की तरफ चलने लगते हैं। Neemuch Mnadi Site ने पहले भी अपनी रिपोर्ट में बताया है कि बाजार का फंडामेंटल कमजोर है।

भारत में पिछले कुछ साल से खाद्य तेलों के आयात के आंकड़ों में भारी इजाफा देखा गया है। बढ़ते आयात का सीधा असर किसान साथियों और स्थानीय छोटे बड़े उद्योगों पर पड़ा है, देश में खाद्य तेलों के भारी आयात के कारण हमारे किसान भाइयों की तिलहन फसलों भाव को लेकर चिंता बढ़ गई है।

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साल 2023-24 में किसानों को तो फ़सल के अच्छे भाव मिले ही नहीं हैं साथ में खाद्य तेलों के व्यापारियों को भी हर भाव में अच्छे खासे घाटे का सामना करना पड़ा है। कुल मिलाकर खाद्य तेलों का बिजनेस एक घाटे का सौदा बनकर रह गया है। अगर यह सब ऐसे ही चलता रहा तो भारत का खाद्य तेलों के मामले में आत्मनिर्भर बनने का सपना एक सपना ही बनकर रह सकता है। WhatsApp पर भाव देखने के लिए हमारा ग्रुप जॉइन करें साथियों आपकी जानकारी के लिए बता दें कि SEA (सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ़ इंडिया) के निदेशक B.B. मेहता के मुताबिक वर्ष 2022-23 में खाद्य तेलों का आयात भारत में तीसरे नंबर पर रहा है।

साल 2023 में भारत ने लगभग 1.38 लाख करोड रुपए के खाद्य तेल का आयात किया था। इतने बड़े पैमाने पर बिना किसी शुल्क दिए खाद्य तेलों का आयात का घरेलु बाजार पर असर तो पड़ना ही था। किसान साथियों आज की इस रिपोर्ट के माध्यम से हम आपको खाद्य तेलों के आयात में वृद्धि के पीछे के कारणों के बारे में विस्तार से जानकारी देंगे, इसके अलावा हम खाद्य तेलों के बाजार का गहरायी से विश्लेषण करेंगे और यह जानने की कोशिश करेंगे कि आने वाले समय में तेल तिलहन की फसलों के भाव की क्या दिशा दशा रह सकती है।

खाद्य तेलों के आयात में क्यों हुई इतनी बढ़ोतरी और क्या है इसका कारण

किसान साथियों सबसे पहले आपको यह समझना जरूरी है कि भारत में इस समय खाद्य तेलों के आयात में वृद्धि क्यों देखी जा रही है, तो हम आपकी जानकारी के लिए बता दें कि साल 2022 में हमारे देश में तिलहन फसलों का उत्पादन बहुत कम मात्रा में हुआ था।

चूंकि खाद्य तेलों की मांग साल दर साल बढ़ती ही जा रही है, बढ़ती हुई मांग की पूर्ति ना होने के कारण भारत की आम जनता को काफी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा था जिसको देखते हुए भारत सरकार ने 2023 में खाद्य तेलों के आयात शुल्क में काफी कमी कर दी थी।

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नतीजन भारत ने खाद्य तेलों के आयात में एक नया रिकॉर्ड स्थापित किया। प्राप्त आंकड़ों के अनुसार भारत में खाद्य तेलों का आयात साल 2022-23 में नवंबर से अक्टूबर की अवधि के दौरान लगभग 164.66 लाख टन रहा जोकि अब तक का सबसे अधिक रहा है वहीं 2021-22 में खाद्य तेलों के आयात की मात्रा लगभग 140.29 लाख टन थी।

हालांकि इस साल यानी की 2024 में खाद्य तेलों का आयात पिछले दो साल की तुलना में कम रहने की संभावना है, क्योंकि इस साल सरसों और अन्य तिलहन फसलों के उत्पादन की मात्रा अधिक रहने की संभावना जताई जा रही है। साथियो अब विडम्बना यह है कि साल 2023 और साल 2024 में तिलहन का उत्पादन तो बढ़ा है लेकिन सरकार ने खाद्य तेलों के आयात पर ड्यूटी में कोई बढ़ोतरी नहीं की है। यही वज़ह है कि सस्ते खाद्य तेलों की भारत में भरमार हो गई है और सरसों, सोयाबीन सहित अन्य तिलहन फसलों के भाव धरातल पर आ गए हैं।

सोयाबीन सहित तिलहन फसलों के ताज़ा भाव

किसान साथियों सरकार द्वारा इस वर्ष यानी की 2024 में सरसों, सनफ्लावर व सोयाबीन की फसल पर क्रमशः 5650, 6760 व 4600 रुपए के न्यूनतम समर्थन मूल्य को निर्धारित किया है, लेकिन देश भर की अलग-अलग मंडियों में सरसों के ताजा भाव 4500 रुपए से 5100 रूपये के बीच में झूल रहे हैं इसके अलावा अन्य तिलहन फसलों की कीमतों का भी देशभर की सभी मंडियों में यही हाल है। लेटेस्ट भाव की बात करें तो उस समय जयपुर में कंडीशन 42 लैब सरसों के भाव 5425 के आसपास चल रहे हैं और भरतपुर में यह भाव 5031 रुपये का है। पिछले दिनों सरसों के भाव 5600 के पार गए थे लेकिन बाजार इसे होल्ड नहीं कर पाया।

इसी तरह से सोयाबीन के भाव भी 4500 के नीचे ही चल रहे हैं। अगर हम देश में अलग-अलग खाद्य तेलों की कीमतों के बारे में बात करें तो रिटेल में सरसों तेल 122 से 131 (थोक में 102-103) रुपए प्रति किलोग्राम, सोयाबीन तेल 100 से ₹110 प्रति किलोग्राम व पामोलिन ऑयल 90 से 100 रुपए प्रति किलोग्राम के भाव से बाजार में बिक रहा है।

देखे आज के अनाज के लाइव मंडी रेट 20 मार्च 2024 सरकार ने घटाया आयात शुल्क भारत सरकार द्वारा वर्ष 2023 में खाद्य तेलों के आयात पर लगने वाले शुल्क में कमी कर दी गई थी क्योंकि मांग के अनुसार देश में तिलहन फसलों का उत्पादन न होने के कारण खाद्य तेलों के दामों में भारी इजाफा देखा गया था, जिसके कारण आम लोगों को काफी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा था, साथ ही वर्ष 2024 में लोकसभा के चुनावों को देखते हुए भी सरकार ने खाद्य तेलों पर आयात शुल्क को कम करने का फैसला लिया ताकि सरकार आने वाले चुनाव में जनता को लुभा सके, सरकार ने वर्ष 2023 में खाद्य तेल के आयात शुल्क को 17.5% से घटाकर 12.5% कर दिया था,

जिसके बाद सेस शुल्क को मिलाकर खाद्य तेलों पर कुल 13.75 फीसदी आयत शुल्क सरकार द्वारा लगाया गया, आयात शुल्क को कम करने का मुख्य उद्देश्य खाद्य तेलों की कीमतों पर नियंत्रण रखना था, विदेशी बाजारों में खाद्य तेलों के भाव कमजोर वर्ष 2023 में खाद्य तेलों की आयात कीमतों में भारी गिरावट देखी गई, आरबीडी पामोलीन की सीआईएफ कीमतें जनवरी 2023 में 982 डॉलर प्रति टन से घटकर नवंबर 2023 में 876 डॉलर प्रति टन रह गई, कच्ची सोयाबीन तेल की कीमतें जनवरी 2023 में 1285 डालर प्रति टन से घटकर नवंबर 2023 में 1068 डॉलर प्रति टन हो गई,

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सनफ्लावर तेल की कीमतों के बारे में बात करें तो जनवरी 2023 में 1295 डॉलर प्रति टन से घटकर 979 डॉलर प्रति टन रहीं, खाद्य तेलों की खपत में हुआ इजाफा देश में खाद्य तेलों के बढ़ते आयात के कारण वर्ष 2023 में कुछ रिपोर्टर्स के अनुसार प्रति व्यक्ति खाद्य तेलों की खपत लगभग 1 किलोग्राम से बढ़ गई, SEA (सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ़ इंडिया) के निदेशक B.B. मेहता के मुताबिक इससे पिछले वर्ष हम लगभग 16.5 किलोग्राम खाद्य तेल की खपत कर रहे थे,

बेबी मेहता ने यह भी कहा कि बढ़ती खपत का मुख्य कारण खाद्य तेल की कीमतों का कम होने के साथ-साथ प्रति व्यक्ति आय का बढ़‌ना है, इन सभी कारणों की वजह से ही वर्ष 2023 में खाद्य तेलों की प्रति व्यक्ति खपत में बढ़ोतरी देखी गई। खाद्य तेलों की कुल खपत, आयात व उत्पादन किसान साथियों USDA के कुछ आंकड़ों के अनुसार भारत देश में तिलहन फसलों की उत्पादन मात्रा पिछले कुछ वर्षों की तुलना में इस बार बढ़ी है, साल 2023-24 में 415 लाख टन तिलहन फसलों का उत्पादन होने का अनुमान लगाया जा रहा है, जबकि पिछले साल यह 413 लाख टन था।

इस साल सरसों का अनुमानित उत्पादन 123 लाख टन और सोयाबीन फसल का उत्पादन 115.28 लाख टन होने का अनुमान है। वहीं मूंगफली की फसल का अनुमानित उत्पादन 78.29 लाख टन होने की संभावना है, वर्तमान समय में पूरे देश की खाद्य तेल की सालाना कुल खपत लगभग 240 लाख मीट्रिक टन है जिसमें से लगभग 140 लाख मीट्रिक टन खाद्य तेल दूसरे देशों से आयात किया जाता है।

बाजार की क्या रह सकती है दिशा दशा तो दोस्तो अगर अपने ऊपर दिए गए डाटा को ठीक से समझ लिया है तो कहने का मतलब यह है कि खाद्य तेलों की डिमांड बढ़ने के बावजूद भी अगर निकट भविष्य में विदेशी बाजारों में खाद्य तेलों के दम नहीं बढ़ते हैं और सरकार ने खाद्य तेलों के आयात शुल्क को नहीं बढ़ाया तो आने वाले समय में तेल तिलहन के बाजार की दिशा दशा मोटे तौर पर सुधरने वाली नहीं दिख रही।

सरकार की इन सभी लोक लुभावन नीतियों के चलते किसानों और घरेलू खाद्य तेल उद्योग ठप्प हो रहे हैं और किसानों को उनकी फसलों का सरकार द्वारा निर्धारित किया गया न्यूनतम समर्थन मूल्य भी नहीं मिल पा रहा है जिसकी वजह से हमारे देश के बहुत से किसान भाई अपनी तिलहन फसलों को सरकार द्वारा निर्धारित किए गए न्यूनतम समर्थन मूल्य से भी कम दामों पर बेचने को मजबूर हैं। ऐसे में किसान साथियों को चाहिए कि वह MSP पर अपनी फसल को बेचने की तैयारी कर लें। और हर छोटे-मोटे उछाल पर अपना मात निकलते रहे। बहुत बड़ी तेजी की संभावना न के बराबर है। यहां से आगे बड़ी मंदी की गुंजाईश भी कम ही है लेकिन फंडामेंटल कमजोर होने के चलते तेजी भी नहीं लगती। अगर आपको फसल को रोक कर रखना है तो आपको बड़ी तेजी के लिए दिवाली के त्यौहार तक भी इंतजार करना पड़ सकता है। व्यापार अपने विवेक से ही करें।

बाजार की क्या रह सकती है दिशा दशा तो दोस्तो अगर अपने ऊपर दिए गए डाटा को ठीक से समझ लिया है तो कहने का मतलब यह है कि खाद्य तेलों की डिमांड बढ़ने के बावजूद भी अगर निकट भविष्य में विदेशी बाजारों में खाद्य तेलों के दम नहीं बढ़ते हैं और सरकार ने खाद्य तेलों के आयात शुल्क को नहीं बढ़ाया तो आने वाले समय में तेल तिलहन के बाजार की दिशा दशा मोटे तौर पर सुधरने वाली नहीं दिख रही।

सरकार की इन सभी लोक लुभावन नीतियों के चलते किसानों और घरेलू खाद्य तेल उद्योग ठप्प हो रहे हैं और किसानों को उनकी फसलों का सरकार द्वारा निर्धारित किया गया न्यूनतम समर्थन मूल्य भी नहीं मिल पा रहा है जिसकी वजह से हमारे देश के बहुत से किसान भाई अपनी तिलहन फसलों को सरकार द्वारा निर्धारित किए गए न्यूनतम समर्थन मूल्य से भी कम दामों पर बेचने को मजबूर हैं। ऐसे में किसान साथियों को चाहिए कि वह MSP पर अपनी फसल को बेचने की तैयारी कर लें। और हर छोटे-मोटे उछाल पर अपना मात निकलते रहे। बहुत बड़ी तेजी की संभावना न के बराबर है। यहां से आगे बड़ी मंदी की गुंजाईश भी कम ही है लेकिन फंडामेंटल कमजोर होने के चलते तेजी भी नहीं लगती। अगर आपको फसल को रोक कर रखना है तो आपको बड़ी तेजी के लिए दिवाली के त्यौहार तक भी इंतजार करना पड़ सकता है। व्यापार अपने विवेक से ही करें।

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