Organic Farming : भारत में सब्जी की खेती अब एक नए दौर की ओर बढ़ रही है. इसमें जैविक खेती के लिए थोड़े से बदलाव और सुधार लाने से किसानों की आय में न केवल वृद्धि होगी, बल्कि किसानों को अनगिनत फायदे भी होंगे. सब्जियों को आसानी से जैविक तरीके से उगाया जा सकता है क्योंकि यह देश के संसाधन और फसल प्रणाली में बहुत अच्छी तरह फिट होती है. इससे किसान कम लागत में उगाकर जैविक सब्जी की खेती से अधिक लाभ ले सकते हैं.
भारत में विभिन्न कृषि-जलवायु क्षेत्रों की विविधता के कारण अलग-अलग प्रकार के जैविक उत्पादों के उत्पादन की बहुत अधिक संभावनाएं हैं. देश प्राकृतिक रूप से उपलब्ध जैविक पोषक तत्वों से लाभान्वित हो सकता है. अगर सब्जियों की बात करें तो इन्हें आसानी से जैविक तरीके से उगाया जा सकता है. इसके लिए भारत में पहाड़ियां, रेगिस्तान और अन्य खेती प्रणाली प्रमुख रूप से शामिल हैं. अधिकांश सब्जियां, अल्पकालिक फसलें होने के कारण, विभिन्न बहु-फसली और अंतर-फसली प्रणालियों में बहुत अच्छी तरह फिट होती हैं. ये कम समय में अधिक उपज और अधिक लाभ देती हैं. साथ ही खेत पर और खेत के बाहर रोजगार उत्पन्न करती हैं. परिणामस्वरूप, हाल के वर्षों में सब्जी फसलों के बिजनेस पर प्रमुख जोर दिया गया है. जैविक सब्जियों की खेती से बेहतर आय और स्थायी उत्पादन संभव है.
किसान छोटे बदलाव से बेहतर मुनाफा कमाएं
भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान, वाराणसी के अनुसार, भारत में कुल कृषि योग्य भूमि का केवल 40 फीसदी हिस्सा उर्वरकों का उपयोग करता है. उर्वरकों का इस्तेमाल मुख्य रूप से उन क्षेत्रों में होता है जहां सिंचाई के साधन उपलब्ध हैं. शेष 60 फीसदी कृषि योग्य भूमि, जो मुख्य रूप से वर्षा पर निर्भर है, में उर्वरकों का बहुत कम उपयोग होता है. इन क्षेत्रों के किसान अक्सर अपने खेतों या स्थानीय स्रोतों से आसानी से उपलब्ध जैविक खाद पर निर्भर रहते हैं. इसलिए इन क्षेत्रों में जैविक सब्जी खेती करके कम लागत में अधिक मूल्य प्राप्त किया जा सकता है.
उत्तर-पूर्वी क्षेत्र, जहां रासायनिक इनपुट का न्यूनतम उपयोग होता है, जैविक खेती के लिए काफी संभावनाएं उपलब्ध कराता है. इस क्षेत्र में लगभग 180 लाख हेक्टेयर भूमि का उपयोग जैविक उत्पादन के लिए किया जा सकता है. वर्षा आधारित, जनजातीय, उत्तर-पूर्वी और पहाड़ी क्षेत्र, जो लंबे समय से आत्मनिर्भर कृषि के साथ न्यूनतम रासायनिक उपयोग कर रहे हैं, स्वाभाविक रूप से जैविक हैं. इन क्षेत्रों की ब्रांडिंग और प्रमाणीकरण की जरूरत है. इसका प्रमाणीकरण करके अपनी सब्जियों से बेहतर मुनाफा कमा सकते हैं.
क्यों करें जैविक सब्जी की खेती?
अधिकांश फल और सब्जियां ताजा अवस्था में खाई जाती हैं. खेती में रासायनिक खादों-स्प्रे के अंधाधुंध उपयोग से खाद्य पदार्थों में एग्रोकेमिकल्स बढ़ने का भय और चिंता होती है. इससे विभिन्न प्रकार के स्वास्थ्य खतरों का सामना करना पड़ सकता है. इसलिए केमिकल मुक्त खाद्य पदार्थों का उत्पादन करने की जरूरत है. जैविक सब्जी उत्पादन, देश की बढ़ती जनसंख्या को खिलाने के अलावा, किसानों की आय बढ़ाकर उन्हें आर्थिक सुरक्षा देता है. भारत में सब्जियों के जैविक उत्पादन की अपार संभावनाएं हैं. भारत के पास जैविक उत्पादों के वैश्विक बाजार में एक प्रमुख आपूर्तिकर्ता बनने की संभावना है. मुख्य निर्यात बाजार यूरोपीय संघ, अमेरिका, गल्फ और खाड़ी देश के आलावा, बांग्लादेश, मलेशिया, नीदरलैंड, श्रीलंका, नेपाल, यूके, पाकिस्तान हैं, जिससे किसान निर्यात के माध्यम से कमाई कर सकते हैं.
जैविक खेती के लिए भरपूर संसाधन
भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान, वाराणसी के अनुसार, भारत हर साल लगभग 7000 लाख टन कृषि अपशिष्ट उत्पन्न करता है, जिसका मतलब है कि प्रति हेक्टेयर प्रति वर्ष लगभग 5 टन जैविक खाद की सैद्धांतिक उपलब्धता है, जो प्रति हेक्टेयर प्रति वर्ष लगभग 100 किलोग्राम NPK के बराबर है. इसमें मुख्य रूप से फसल अवशेष 3865 लाख टन, पशु गोबर 3854 लाख टन, हरी खाद 223 लाख टन, और जैविक उर्वरक 370 लाख टन है. इसके अलावा मिट्टी के पोषक तत्वों के लिए विभिन्न विकल्पों में खाद, एफवाईएम (फार्म यार्ड मैन्योर), फसल अवशेष, वर्मीकम्पोस्ट और जैविक उर्वरक शामिल हैं. इसके अलावा फसल चक्र में दलहन शामिल करके खेत की उर्वरता को बढ़ा सकते हैं.
जैविक सब्जियों से सभी रहेंगे स्वस्थ
सब्जियां सुपाच्य कार्बोहाइड्रेट, संपूर्ण प्रोटीन, जरूरी पोषक तत्व, एंटीऑक्सिडेंट, फाइबर और नियासिन, राइबोफ्लेविन, थायमिन, विटामिन ए और सी जैसे विटामिन देती हैं. हरी पत्तेदार सब्जियां, जैसे अमरनाथ, बथुआ और पालक, फोलिक एसिड से भरपूर होती हैं. यदि हम इन्हें जैविक तरीके से उगाते हैं तो इनकी पोषक गुणवत्ता बनी रहती है, क्योंकि भारतीय जनसंख्या का एक अहम हिस्सा कुपोषित है या असंतुलित आहार का सेवन करता है. सब्जियों का सेवन बढ़ाने से कुपोषण और सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी को दूर करने में मदद मिल सकती है. सब्जियां खाद्य और पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करने में अहम हैं.
जैविक सब्जी की खेती के फायदे अनेक
जैविक खेती मिट्टी की उर्वरता बनाए रखने के साथ उच्च गुणवत्ता वाला भोजन उत्पादन करती है, जैव विविधता को बढ़ावा देती है, प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण करती है और पर्यावरण प्रदूषण को कम करने में सहायता करती है. संयुक्त राष्ट्र खाद्य और कृषि संगठन की रिपोर्ट के अनुसार, लगभग 17 परसेंट भारतीय पर्याप्त पोषण के अभाव में उत्पादक जीवन जीने में असमर्थ हैं. मुख्य समस्या आहार में संतुलित पोषण की कमी है.
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एक आंकड़े के मुताबिक, हमारे देश में पांच में से तीन लोग फल और सब्जियों का कम सेवन करते हैं. इसलिए फल-सब्जियों की गुणवत्ता बनाए रखने के साथ-साथ आहार में संतुलित पोषण की आवश्यकता पर जोर देते हुए ज्यादा से ज्यादा फल-सब्जियों के सेवन के लिए लोगों को जागरूक करें. इससे हमारे देश के लाखों लोगों के लिए खाद्य और पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करने और कुपोषण को समाप्त करने की व्यापक संभावनाएं दी जा सकती हैं. जैविक सब्जी की खेती से न केवल किसानों की आर्थिक स्थिति मजबूत होती है, बल्कि यह पर्यावरण और समाज के लिए भी फायदेमंद साबित होती है. इस प्रकार की खेती बढ़ावा देने वाली है और देश की अर्थव्यवस्था में सुधार करने में मदद कर सकती है.