Wheat Procurement : गेहूं खरीद के मामले में केंद्र सरकार को सबसे ज्यादा निराश उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश ने किया है. उत्तर प्रदेश देश का सबसे बड़ा गेहूं उत्पादक है, लेकिन यहां इस साल सिर्फ 9.28 लाख टन गेहूं ही खरीदा गया है, जो राज्य को दिए गए टारगेट का सिर्फ 15.46 फीसदी ही है. दूसरी ओर, बिहार ने लक्ष्य का सिर्फ 5 फीसदी गेहूं ही खरीदा है.
बफर स्टॉक यानी सेंट्रल पूल के लिए गेहूं खरीद की प्रक्रिया पूरी हो गई है. लगातार तीसरे वर्ष केंद्र सरकार अपना लक्ष्य हासिल करने में विफल रही है, क्योंकि कई राज्यों में गेहूं का बाजार भाव न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) से अधिक है. सरकार ने 2024 के लिए 372.9 लाख टन गेहूं खरीदने का टारगेट रखा था, लेकिन 265.5 लाख टन पर ही पूरी खरीद सिमट गई. इस तरह सरकार अपने लक्ष्य से 107 लाख टन पीछे है. वजह यह है कि देश के किसी एक सूबे ने भी अपना टारगेट पूरा नहीं किया. केंद्र सरकार राज्यों के भरोसे अपने खरीद का लक्ष्य सेट करती है. केंद्र को इस साल सबसे ज्यादा झटका बीजेपी के शासन वाले उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश ने दिया है. मध्य प्रदेश अपने गेहूं खरीद लक्ष्य से 32 लाख तो उत्तर प्रदेश 50 लाख टन पीछे रहा है.
दरअसल, इस साल भी किसानों ने सरकारी एजेंसियों को गेहूं नहीं बेचा है. क्योंकि ओपन मार्केट में रेट ज्यादा था. इस साल 37,05,051 किसानों ने एमएसपी पर गेहूं बेचने के लिए रजिस्ट्रेशन करवाया था, जिसमें से 21,03,356 लाख किसानों ने ही सरकार को अपनी उपज बेची. बाकी किसानों ने या तो गेहूं व्यापारियों को बेच दिया या फिर अच्छे दाम की उम्मीद में अपने पास स्टोर करके जिसकी एमएसपी के तौर पर उन्हें 58,636 करोड़ रुपये मिले हैं. इस साल सरकार 2275 रुपये प्रति क्विंटल के भाव पर गेहूं खरीद रही थी, जबकि ओपन मार्केट में किसानों को 2400 से 2500 रुपये प्रति क्विंटल तक का रेट मिला.
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किस राज्य में कितनी खरीद
- उत्तर प्रदेश में देश का करीब 33 फीसदी गेहूं पैदा होता है. यह सबसे बड़ा गेहूं उत्पादक है. यहां इस साल सिर्फ 9.28 लाख टन गेहूं ही खरीदा गया है. जबकि टारगेट 60 लाख टन का था. यानी यूपी में टारगेट का मात्र 15.46 फीसदी गेहूं ही खरीदा गया.
- मध्य प्रदेश में देश का लगभग 20 फीसदी गेहूं पैदा होता है. यह देश का दूसरा सबसे बड़ा गेहूं उत्पादक राज्य है. यहां इस साल मात्र 48.39 लाख टन की ही खरीद हो पाई है, जबकि 80 लाख टन का टारगेट दिया गया था. इसका मतलब यह है कि केंद्रीय कृषि मंत्री के सूबे में केंद्र द्वारा दिए गए टारगेट का महज 60.48 फीसदी ही खरीद हुई है.
- देश का तीसरा सबसे बड़ा गेहूं उत्पादक पंजाब है. कुल उत्पादन में इसकी भागीदार सिर्फ 15 फीसदी है. इसके बावजूद इसने देश में सबसे ज्यादा 124.55 लाख टन की खरीद की है. यहां पर 130 लाख टन के खरीद का टारगेट दिया गया था. यानी यहां टारगेट का 95.8 फीसदी गेहूं खरीदा गया है.
- हरियाणा 10.5 फीसदी की हिस्सेदारी के साथ देश का चौथा सबसे बड़ा गेहूं उत्पादक है. यहां पर इस साल 71.15 लाख टन की खरीद हुई है. यह देश की दूसरी सबसे बड़ी खरीद है. केंद्र ने हरियाणा को 80 लाख टन गेहूं खरीदने का लक्ष्य दिया था. यहां पर 88.9 फीसदी खरीद हुई है.
- राजस्थान देश का पांचवां सबसे बड़ा गेहूं उत्पादक राज्य है, जिसकी कुल उत्पादन में 9.7 फीसदी की हिस्सेदारी है. यहां पर 12 लाख टन से अधिक गेहूं की खरीद हुई है. जबकि 20 लाख टन का टारगेट दिया गया था. इस तरह राजस्थान में लक्ष्य का 60 फीसदी गेहूं खरीदा गया है.
- बिहार 5.8 फीसदी उत्पादन की हिस्सेदारी के साथ देश का छठा सबसे बड़ा गेहूं उत्पादक राज्य है. यहां इस साल 2 लाख मीट्रिक टन गेहूं खरीद का टारगेट रखा गया था, जबकि महज 10118.5 टन की ही खरीद हुई है. इस मतलब साफ है कि बिहार ने केंद्र द्वारा दिए गए लक्ष्य का सिर्फ 5 फीसदी गेहूं खरीदा.
लगातार तीसरे साल नाकामी
गेहूं खरीद के मुद्दे पर केंद्र सरकार लगातार तीसरे साल अपने लक्ष्य से पीछे रह गई है. पिछले साल यानी रबी मार्केटिंग सीजन 2023-24 में सरकार ने 341.50 लाख टन गेहूं खरीदने का लक्ष्य रखा था. लेकिन पूरी खरीद सिर्फ 262 लाख मीट्रिक टन पर ही सिमट कर रह गई थी. इससे पहले रबी मार्केटिंग सीजन 2022-23 में सरकार ने 444 लाख मिट्रिक टन गेहूं खरीदने का लक्ष्य रखा था. हालात ये हो गए कि सरकार को अपना खरीद लक्ष्य संशोधित करके 195 लाख टन करना पड़ा. संशोधित लक्ष्य भी पूरा नहीं हुआ और देश में गेहूं की पूरी खरीद महज 187.9 लाख मीट्रिक टन पर ही सिमट गई थी. इस साल यानी 2024-25 में भी सरकार अपने लक्ष्य से पीछे रह गई है. सरकार टारगेट का 71.1 फीसदी ही गेहूं खरीद कर पाई है.
बोनस भी काम नहीं आया
बीजेपी ने 2023 के विधानसभा चुनावों में राजस्थान और मध्य प्रदेश के किसानों से 2700 रुपये प्रति क्विंटल के दाम पर गेहूं खरीदने का वादा किया था. यानी 425 रुपये प्रति क्विंटल की दर से बोनस देने का भरोसा दिलाया गया. दोनों सूबों में बीजेपी की सरकार बनी, लेकिन दोनों के मुख्यमंत्री पार्टी द्वारा किए गए वादे से साफ मुकर गए. जब दबाव पड़ा तो सिर्फ 125 रुपये क्विंटल का बोनस दिया. यानी राजस्थान और मध्य प्रदेश में 2400 रुपये प्रति क्विंटल पर गेहूं खरीदा गया, इसके बावजूद दोनों राज्य अपने खरीद लक्ष्य से पीछे ही रहे. क्योंकि किसानों को उम्मीद है कि उन्हें इसी साल आगे चलकर इससे भी अच्छा दाम मिलेगा.