इस व्यक्ति ने ₹20 हजार की नौकरी छोड़ी, सिर्फ एक फसल से 4 महीने में 40 लाख रुपए कमाए, आप अभी जान लो जल्दी से इस खेती की पूरी टेक्निक

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Former success story: दोस्तों भारत एक कृषि प्रधान देश है यहां पर खेती परंपरागत तरीके से अधिक होती है। यही कारण है की खेती बाड़ी से किसानों को अधिक फायदा नहीं होता है इतना ही नहीं लागत दिन-ब-दिन बढ़ाने के कारण किसानों को रुझान खेती से घटा जा रहा है इसके विपरीत कई किसान उन्नत संसाधनों से खेती करके लाखों का फायदा कमा रहे हैं |

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किसानों ने खेती Former success story के क्षेत्र में भी सफलता हासिल की है। खेती किसानी से लाखों रुपए कमाने वाले किसान सभी किसानों को प्रोत्साहित करते हैं। खेती से 4 महीने में 40 लख रुपए की कमाई करने वाले एक किसान की कहानी एवं उनके द्वारा अपनाई गई खेती की पूरी तकनीक इस आर्टिकल में जानते हैं..

छिंदवाड़ा के युवा किसान की 4 महीने में बदली किस्मत

Former success story एग्रीकल्चर में एमएससी करने के बाद एक सीड्स कंपनी में महज 20 हजार रुपए महीना में नौकरी की। कम तनख्वाह में मन नहीं लगा तो युवक लौट आया गांव और अपने ही खेत में लहसुन की खेती की, जिसमें एक ही बार में 40 लाख रुपए से अधिक कमा लिए। यह युवा किसान हैं छिंदवाड़ा से 25 किमी दूर पौनार गांव के राहुल देशमुख।

राहुल बताते हैं इस साल मंहगा बीज होने के बावजूद 13 एकड़ में नई पद्धति से लहसुन की बोवनी की और लहसुन की खेती से राहुल ने लाखों की कमाई की। छिंदवाड़ा कृषि उपसंचालक जेआर हेड़ाऊ ने बताया कि राहुल देशमुख ने 13 एकड़ में फसल लगाई थी और उसने थोक में जिले के अलावा प्रदेश के बाहर बड़े शहरों नागपुर, हैदराबाद में लहसुन बेचा है। इतनी बड़ी आय उसी से हुई है।

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किसान ने कहा बाजार का रुख देखना जरूरी 

युवा किसान Former success story राहुल बताते हैं कि 120 दिन में मजदूर, पानी, खाद और देखरेख मिलाकर 25 लाख व अन्य खर्च मिलाकर कुल 60 लाख रुपए खर्च हुए। युवा किसान ने कहा कि जब थोक बाजार में लहसुन सस्ता था तो थोड़ा इंतजार किया और दाम 300 से 350 रुपए किलो होने पर छिंदवाड़ा, नागपुर, हैदराबाद व तमिलनाडु में करीब एक करोड़ में बेचा।

राहुल बताते हैं, उन्हें सभी खर्च अलग कर 40 लाख से अधिक की आमदनी हुई है। यदि खेती वैज्ञानिक पद्धति से खेती की जाए तो इससे अच्छा कोई व्यापार नहीं है। वह कहते हैं कि एग्रीकल्चर में एमएससी करने के बाद 20 हजार रुपए महीने की तनख्वाह पर नौकरी की। इस दौरान उन्होंने कुछ किसानों को खासा मुनाफा कमाते देखा। उन किसानों से प्रेरित होकर नौकरी छोड़कर किसानी शुरू की। आज वे करीब 150 लोगों को रोजगार दे रहे हैं।

अब आईए जानते हैं लहसुन की खेती की पूरी टेक्निक

Former success story लहसुन महत्वपूर्ण बल्ब फसलों में से एक है। यह एक मसाला के रूप में भारत में प्रयोग किया जाता है। लहसुन की खेती आम तौर पर आंध्रप्रदेश, उत्तर प्रदेश, मद्रास और गुजरात में खेती की जाती है। एमपी के नीमच, मंदसौर, रतलाम-जावरा, उज्जैन जिलों के अलावा अन्य जिलों में भी लहसुन की खेती होती है। लहसुन कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, फॉस्फोरस का एक प्रचूर स्त्रोत के रूप में माना जाता रहा है। इसलिए इसकी डिमांड फार्मा इंडस्ट्री में भी है।

लहसुन की खेती के लि‍ए मौसम और जलवायु

लहसुन की खेती विभिन्न जलवायु परिस्थितियों में की जाती है, हालाँकि, लहसुन की फसल को बहुत गर्म और बहुत ठंडे तापमान में नहीं उगाया जा सकता है। इस फसल को वानस्पतिक वृद्धि और कंद विकास चरण के दौरान ठंडी और नम जलवायु की आवश्यकता होती है, लेकिन परिपक्वता के दौरान गर्म शुष्क मौसम की आवश्यकता होती है। गर्म परिस्थितियों की तुलना में ठंडे वातावरण में आम तौर पर बहुत अधिक पैदावार होती है।

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किस्म की आवश्यकता के अनुसार छोटे पौधों को 1-2 महीने के लिए 200 सेमी. अथवा कम तापमान के कारण आगामी कंद निर्माण बढ़ जाता है। जो पौधे ऐसी जलवायु परिस्थितियों में नहीं रहते, वे कंद पैदा करने या छोटे आकार के कंद पैदा करने में विफल हो जाते हैं। हालाँकि, लंबे समय तक कम तापमान के संपर्क में रहने से पत्ती की धुरी में कंद का निर्माण हो सकता है, जिससे कंद की उपज कम हो सकती है। लहसुन की कम दिन की रोशनी और लंबे दिन की रोशनी वाली किस्मों में, कंद के विकास के लिए महत्वपूर्ण दिन की रोशनी क्रमशः 10-12 घंटे और 13-14 घंटे है।

लहसुन उगाने के लि‍ए उपयुक्त मिट्टी

Former success story लहसुन की खेती मध्यम काली से चिकनी बलुई मिट्टी, जिसमें पोटास की काफी अच्छी मात्रा हो अच्छी मानी गई है। लहसुन जमीन के नीचे तैयार होने वाली फसल हैं, जिसकी जडें जमीन से अधिकतम 20-25 सें.मी. तक जाती है।

कन्दीय फसल होने के कारण भुरभुरी तथा जल निकास वाली भूमि उत्तम मानी जाती है। बलुई दोमट भूमि सर्वोत्तम होती है। अन्य भूमि में भी उगाई जा सकती हैं। लहसुन की खेती के लिए भारी मृदा उपयुक्त नहीं होती है, क्योंकि इसमें जल निकास उपयुक्त नहीं होने के कारण कन्दों का समुचित विकास नहीं हो पाते तथा कंद छोटे रह जाते है, इस कारण भारी मृदा में लहसुन नहीं लगाना चाहिए। भूमि का पीएच मान 5.8-6.5 के मध्य होना चाहिए।

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लहसुन के लि‍ए खेत की तैयारी

Former success story पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से 15-20 से.मी. गहरी जुताई करनी चाहिए। इसके पश्चात् दो-तीन बार कल्टीवेटर चलाना चाहिए, जिससे ढेले टूट जाए और मिट्टी भुरभुरी हो जाती है। दूब या मौथा आदि खरपतवारों को जड़ सहित निकाल कर जला देना चाहिए।

खेत में 20-25 टन अच्छी तरह से सड़ी हुई गोबर की खाद डाल कर उसे हैरो से मिट्टी में अच्छी तरह से मिला देना चाहिए। अच्छी तरह तैयार खेत में भूमि के प्रकार, मौसम, वर्षा की मात्रा आदि को ध्यान में रखते हुए समतल क्यारियां बनाकर प्याज की रोपाई किया जाता है।

Former success story ज्यादातर, समतल क्यारियां 1.5-2.0 मी. चौड़े और 4-6 मी. लम्बे बनते है। लेकिन समतल क्यारियां खरीफ या बरसात के मौसम के लिए उपयुक्त नहीं होते है। इस मौसम के लिए ऊंचे मेड़ बनाने चाहिए ताकी पानी की निकासी हो सके।

लहसुन बोने के लि‍ए बीज दर और बुवाई का समय

Former success story लहसुन के लिए 400-500 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर बीज पर्याप्त होती है। लहसुन की खेती रबी और गर्मी के दिनों में की जाती हैं। अगस्त-नवम्बर तक इसे लगाया जा सकता है।

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लहसुन की उन्‍नत किस्में

गोदावारी :- यह किस्म Former success story जामनगर संग्रहण से चयन द्वारा विकसित है बल्ब आकार में मध्यम और गुलाबी रंग का होता है। प्रति बल्ब 25-30 कलियॉ होती है। यह किस्म माहू के लिए सहनषील हैं। अवधि 130-140 दिन है। औसत उपज 150 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होता है।

श्वेता :- बल्ब का आकार मध्यम व सफेद रंग होता हैं। प्रति बल्ब 20-25 कलियॉ होती है। अवधि 120-130 दिन हैं। औसत उपज 130 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है।

भीमा ओमेरी :– रबी मौसम के लिए उपयुक्त सफेद Former success story कंद 120-135 दिन में परिपक्कता, औसत उपज 10-12 टन/हे., उपज क्षमता 14 टन/हे., 6-8 माह तक भण्डारण योग्य। इसके अलाव फवारी, राजली गादी जी-451, सलेक्षन-2, सलेक्षन-10 कि‍‍‍‍‍स्‍मे भी बहुत पापुलर है।

लहसुन की रोपाई

Former success story कलियॉ का चयन लहसुन के रोपण लिए महत्वपूर्ण हैं। बीज लहसुन बल्ब से अलग-अलग कलियॉ बोने से पहले अलग कर लें, लेकिन लंबे समय से पहले नहीं। बड़ी कलियॉ रोपण के लिए चयनित किया जाना चाहिए। छोटे, रोगग्रस्त और क्षतिग्रस्त कलियॉ का चयन नहीं करना चाहिए।

कलियॉ को कार्बेन्डाजिम 0.1 प्रतिषत की घोल से उपचारित करना चाहिए जिससे कवकजनित रोगों के प्रभाव को कम किया जा सके। लहसुन के लिए बीज दर 400-500 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर पर्याप्त होती हैं। चयनित कलियॉ 10 से.मी. दुरी पर कलियॉ लगाई जानी चाहिए।

लहसुन में खाद एवं उर्वरक

Former success story गोबर की खाद या कम्पोस्ट 200-300 क्विंटल प्रति हेक्टर तथा नाइट्रोजन, फॉस्फोरस एवं पोटाष क्रमष: 100,50,50 किलों प्रति हेक्टर आवष्यक है। गोबर की खाद या कम्पोस्ट, फास्फोरस तथा पोटाष की पूरी मात्रा एवं नाइट्रोजन की 1/3 मात्रा भूमि के तैयारी के समय तथा नाइट्रोजन की बाकी मात्रा को दो भाग में बांटकर रोपाई के 25-30 दिन एवं 40-45 दिन में गुडाई करते समय देना चाहियें।

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लहसुन में सिंचाई

पहली सिंचाई बुवाई Former success story के बाद दिया जाता है। लहसुन की फसल को शुरूआत में हल्का परन्तु कम अंतर पर पानी की आवष्यकता होती है सुखे खेत में रोपाई के तुरन्त बाद सिंचाई की जानी चाहिए। नयी जडें विकसत होने तक खेत में पर्याप्त नमी होना आवष्यक हैं।

इसलिए रोपाई के बाद की गई सिंचाई के दो-तीन दिन बाद दूसरी सिंचाई की आवष्यकता होती है। एक बार पौधों को स्थापित हो जाने के बाद आरंभिक समय में पानी की आवष्यकता कम हो जाती हैं। परन्तु जैसे-जैसे पौधो की वृध्दि होती है।

Former success story उनकी पानी की आवश्यकता बढने लगती है। पौधों में गांठ बनना आरंभ होने से कन्दों के पूर्ण विकास तक (रोपाई के 60-110 दिन तक) नियमित रूप से सिंचाई की आवष्यकता होती है। रोपाई के तुरन्त अंतराल पर एक सिंचाई की जाती हैं इसके बाद मौसम के अनुसार रबी मौसम (नवम्बर-जनवरी) में 10-12 दिन के बाद सिंचाई की जाती है फरवरी-अपै्रल माह में 7-8 दिनों के अन्तराल पर सिचांई की जानी चाहिए।

लहसुन में खरपतवार प्रबंधन

Former success story लहसुन कलियों का अंकुरण 7-8 दिनों में होता है। लेकिन खरपतवार 3-4 दिन बाद लहसुन के रोपण के उपरान्त उग जाते है। जिसका उचित प्रबंधन अति आवष्यक है। लहसुन में खरपतवार की रासायनिक प्रबंधन के लिए पेन्डिामेथेलिन 30 ई.सी. /3.5-4 मि.ली. प्र्रति लिटर पानी या ऑक्सीफलोरोफेन 25 अनुपात ई.सी. /1.52 मि.ली. प्रति लिटर पानी के साथ बुवाई से पहले या बुवाई के बाद स्प्रे किया जा सकता है।

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लहसुन में निदाई-गुड़ाई

Former success story पहली निदाई गुडाई हाथ या खुरपी से बुवाई के एक महीने बाद किया जाना चाहिए। दूसरी निदाई-गुडाई बुवाई के दो महीने के बाद किया जाता है। बल्ब के उचित विकास के लिए निदाई-गुडाई अति आवष्यक है।

लहसुन की खुदाई

लहसुन 4 से 5 महीनों की अवधि का फसल Former success story हैं। जब पत्ते पीले या भूरा होने प्रारंभ करें और सूखने के लक्षण दिखाने तब पौधे कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं। देसी हल की मदद से पौधे को बाहर निकाल ले। और कम से कम 2-3 दिनाें के लिए खेत में सुखने के लिए छोड़ दें ताकि बल्ब की गुणवत्ता लंबे समय के बरकारार रहे बल्ब या उन्हें सूखी फर्श पर एक अच्छी तरह हवादार कमरे में फर्श पर सूखी रेत पर रखते है। सामान्यतः एक हेक्टेयर में लहसुन की उपज लगभग 100 क्विंटल तक होती है।

लहसुन फसल पर लगने वाली बिमारियां एवं रोकथाम

लहसुन का आर्द्र गलन :- यह रोग स्केलेरोशियम राल्फसी नामक कवक से होता हैं जो कि पौधशाला में बीज अंकुरण के बाद पौधों की बढ़वार के समय प्रभावित करता हैं जिससे पौधो Former success story पीले पड़ने लगते हैं पौधों का जमीन से लगने वाला भाग सड़ने लगता हैं और फिर पौधें सूखने लगते है।

मुरझाये हुए पौधों के जमीन वाला भाग कवक के सफेद तन्तु विकसित होते हैं जिन पर सफेद रंग छोटी दानेदार रचना होती हैं। पौधषाला में यदि जल निकास अच्छा न हो, तो इस रोग का प्रकोप अधिक होता है।

रोकथाम :- बुवाई से पूर्व बीज का केप्टान (2-3 ग्राम प्रति किग्रा बीज) से उपचारित करना चाहिए। ट्राईकोडर्मा विरिडीस प्रति किलो 4 ग्राम की दर से बीजों को उपचारित Former success story करना चाहिए। पौधेशाला कभी भी उठी हुई क्यारियों पर तैयार करना चाहिए। इससे जलनिकास अच्छा होता है।

लहसुन का बैंगनी धब्बा :- यह रोग अल्टरनेरिया पोरी नामक कवक से होता हैं। यह रोग पौधों की किसी भी अवस्था में आ सकता है। इस रोग में पतियो या पुष्प (फूल) गुच्छा की डणिडयों पर आरंभ में छोटे, दबे हुए, बैंगनी केन्द्र वाले लंबवत सफेद धब्बे बनते है।

यह धब्बे धीरे-धीरे बढने लगते हैं तथा आरंभ में धब्बे बैंगनी होते है। जो बाद में काले हो जाते है। ऐसे अनेक धब्बे बडे होकर आपस में मिल जाते है और पतियां पीली पड़कर सूख जती हैं। खरीफ मौसम में इस रोग का अधिक प्रकोप होता है।

रोकथाम :- बुवाई से पूर्व बीजों को 2-3 ग्राम डाइथायोकार्बामेट प्रति किग्रा. बीज की दर से उपचारित करना चाहिए। Former success story नत्रजन युक्त उर्वरकों का प्रमाण से अधिक और देर से प्रयोग नही करना चाहिए। मेन्कोजेब 30 ग्राम या कार्बान्डाजिम 20 ग्राम या क्लोरोथलोनिल 20 गा्रम नामक कवकनाषकों को 10 लीटर पानी में घोल कर 12-15 दिन के अन्तराल पर छिड़काव करना चाहिए।

लहसुन का श्याम वर्ण (काला धब्बा) :- यह रोग कोलेटोट्रायकम ग्लेओस्पोराइडम कवक से होता है। रोग के प्रारम्भ में पत्तिायो के बाहरी भाग पर जमीन से लगने वाले भाग में राख जैसे चकते बनते है। जो बाद में बढ़ जाते है तथा सम्पूर्ण पतियों पर काले रंग के उभार दिखने लगते हैं। ये उभार गोलाकर होते है।

इससे प्रभावित पत्तिायॉ मुरझाकर मुड़ जाती हैं तथा अंत में सुख जाती हैं। लगातार एक के बाद एक पतियॉ काली हो जाती हैं और पौधें मर जाते हैं। खरीफ के मौसम में नमी वाले वातावरण में इस रोग की शीघ्र वृध्दि होती है।

रोकथाम :- रोपाई से पूर्व पौधों Former success story के जड़ों को कार्बान्डाजिम 2 अनुपात में डुबाना चाहिए। पौधशाला में बीज पतला बोना चाहिए। मेन्कोजेब (डाईथेन एम-45) 30 ग्राम या कार्बेन्डाजिम 20 ग्राम को 10 लीटर पानी में घोल कर 12-15 दिन के अन्तराल पर अदल-बदल कर छिडकाव करना चाहिए।

लहसुन का आधार विगजल :- यह रोग फ्युजेरियम ऑक्सिस्पोरियम नामक कवक से होता हैैं। अधिक तापमान तथा अधिक आर्द्रता वाले क्षेत्राें में इस रोग का अधिक प्रकोप होता है। पौधो की कम वृध्दि तथा पंत्तिायों का पिला पड़ना, इस रोग के प्रथम लक्षण है।

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रोपाई किये किए हुए पौधो की जड़ें सडने लगती है तथा पौधें आसानी से उखड़ जाते हैं रोगाग्रस्त पौधाें की जड़ें कालापन लिए हुए भूरी होने लगती है तथा पतली हो जाती है। रोग के अधिक प्रकोप में कन्द जड़ के पास सडने लगते हैं तथा मर जाते हैं।

रोकथाम :- इस रोग Former success story के कारक जमीन में रहते है। इस कारण उचित फसल चक्र अपनाना आवष्यक हैं। डायथायोकार्बामेट (2 ग्राम प्रति किग्रा. बीज की दर ) से बीज को उपचारित कर बोना चाहिए। गोबर की खाद के साथ खेत में ट्रायकोडर्मा विहरीडीस 5 किलो प्रति हैक्टर की दर से मिलाना चाहिए।

लहसुन फसल पर लगने वाली कीट

लहसुन का थ्रिप्स :- थ्रिप्स लहसुन Former success story का प्रमुख नुकसानदायक कीट हैं। यह कीट आकार में बहुत छोटे होते हैं अभ्रक तथा प्रौढ कीट नई पतियों का रस चूसते हैं कीड़ों के रस चुसने से पतियो पर असंख्य सफेद रंग के निषान दिखते है। अधिक प्रकोप से पतियॉ मुड़कर झुक जाती है।

फसल की किसी भी अवस्था में कीडो का प्रकोप हो सकता हैं रोपाई के तुरन्त बाद इनके प्रकोप से पतियॉ मुड़ने के कारण कन्दों का पोषण नहीं होता है थ्रिप्स के द्वारा किये गये सूक्ष्म जीवों मे बैंगनी, काला सा भूरा धब्बा तथा अन्य कवको के रोगाणु पौधों मे ंप्रवेष कर जाते हैं तथा पौधो में रोग को प्रकोप भी बढता हुआ पाया गया है।

रोकथाम :- लहसुन की रोपाई से पूर्व खेत में फोरेट 10 जी 4 किग्रा. प्रति एकड़ या कार्बाफ्युरॉन 3 जी 14 किग्रा. प्रति एकड़ की दर से जमीन में मिलाना चाहिए। प्रत्येक 12-15 दिन के अन्तराल पर डायमेथोयट (03) 15 मिली. मोनोक्रोटोफॉस (0.07) 20 मिली. या साइपरमीथ्रिन (10 ईसी) 5 मिली. या प्रोफेनोफॉस 10 मिली आदि दवाओं में से कोई एक दवा प्रति 10 लीटर पानी में मिलाकर अदल-बदल कर छिड़काव Former success storyकरना चाहिए। इस प्रकार कम से कम 4-5 छिड़काव की आवष्यकता होती है।

लहसुन का कटवा :- इस कीड़े की सूडियॉ (इल्ली) पौधों को नुकसान पहुंचाते है। ये पौधों के जमीन के अन्दर वाले भागो को कतरती हैं। जिससे पौधे सुखने लगते है तथा उखाड़ने पर आसानी से उखड जाते हैं। ककरिली, रेतीली या हल्की मिट्टियों में इस कीडे क़ा अधिक प्रकोप होता है।

रोकथाम :- पिछली फसल के अवषेषों को नष्ट कर देना चाहिए। रोपाई से पूर्व फोरेट 10 जी 4 किग्रा. प्रति एकड़ या कार्बोफ्यूरॉन 3 जी 14 किग्रा. प्रति एकड़ की दर से खेत में डालना चाहिए। उचित फसल चक्र अपनाना चाहिए।

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लहसुन में दीमक :- कंकरीली, रेतीली या हल्की जमीन में दीमक से अधिक नुकसान होता है इसके अलावा फसल के अवषेष ठीक से सड़ें न हो या कच्ची गोबर की खाद Former success story या कम्पोस्ट डाला हो तो भी इससे नुकसान अधिक होता हैं कई बारे खेत के बांध पर दीमक की बांबी होती है इस कारण प्याज फसल को भी नुकसान होता है। यह पौधों की जड़ तथा कन्दों को कुतरते है जिससे पौधा सूख जाता हैं।

रोकथाम :- इसका प्रकोप के लिए प्रति एकड़ 40-50 किलो हेप्टाक्लोर पाउडर जमीन में अच्छी तरह मिला दें व बाद में बांध पर दीमक की बांबीयों को नष्ट कर दें।

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लहसुन का भण्डारण कैसे करें

  • Former success story लहसुन के अधिक समय तक भण्डारण के लिए भण्डारण गृहों का तापमान तथा अपेक्षाकृत आर्द्रता महत्वपूर्ण कारक हैं अकणक आर्द्रता (70 अनुपात से अधिक) लहसुन के भण्डारण का सबसे बड़े शत्रु है। इससे फफुंदों का प्रकोप भी बढ़ता है व लहसुन सड़ने लगता हैं।
  • इसके विपरीत कम आर्द्रता (65 अनुपात से अधिक) होने पर लहसुन के वाष्पोर्त्सन अधिक होता हैं तथा वजन में कमी अधिक होने लगती हैं। लम्बे समय तक भण्डारण के लिए भण्डार के गृहों का ता
  • Former success story पमान 1-0 सेंटीग्रेड तथा 65-70 प्रतिशत के मध्य आद्रता होनी चाहिए।

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